Friday 21 March 2014

माँ

मेरी माँ 

माँ से दूर जाकर ही ये बात समज मे आई है,
माँ तेरी हर बात मे सच्चाई है। 

जब भी तू मुझे रोकती थी या टोकती थी,
मुझे ये कभी पसंद नहीं आता था,
मुझे तेरे पे बड़ा गुस्सा आता था,
मेरी लाइफ है मैं कुछ भी करू। 

हाँ मैं जानता था कि,
कभी-कभी या तो सभी बातों मे तू सही थी,
पर मैं भी तो तेरे जैसा ही था,
मैं तेरी क्यों सुनता। 

पर आज जब तेरे से दूर हूँ तो समज मे आया है,
माँ मैंने तुझे काफी सताया है,
तुझसे बहोत प्यार किया पर कभी नही बताया है। 

शायद तब मैं शरमाता था,
तेरा बनाया खाना सब से अच्छा है,
ये मैं तेरे अलावा सब को बताता था। 

माँ तुने मुझे जो प्यार दिया,
वो कभी वापस नहीं लौटा पाऊँगा।

माँ तेरी कोई बात आज भी जब याद आती है,
मुझे उसकी सच्चाई का एहसास करा जाती है। 

माँ, तुजसे दूर जाकर ही ये बात समज मे आई है,
माँ तेरी हर बात मे सच्चाई है।  

Thursday 22 September 2011

आईना

आईने के लिए दीवार कि तरफ देखा मैने,
आज आईना वहां नही था।

एक दीवार जरुर थी!!

जिसका थोडा रंग कही से धुधला हो गया था,
कही पर दरारें थी,
कहीं पर गढढे थे,
जाले थे कहीं पर।

थे तो ये सभी कभी के,
पर छुपे थे आईने के पिछे।

बचे हुए थे मेरी नजर से।

मुझे आज मेरा चहेरा तो नहीं दिखा,
पर,
आईना जरुर दिख गया।

मै भी इस दीवार कि तरह
तो हुँ,
धुँधला,
जड,
छुपा हुआ कवच के भितर,
अपरिवर्तनशिल,

यह नहि बदल सकती स्वंय से,
मै तो बदल सकता हुँ।

आज दीवार ने आईना दिखा दिया।